रामप्रसाद बिस्मिल

रामप्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपने जीवन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष किया। उनका जन्म 11 जुलाई 1897 को हुआ था और उन्होंने अपने योगदान से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपनी विशेष स्थानीयता बनाई


https://studyup4u.blogspot.com/2023/09/Ram Prasad Bismil.html


रामप्रसाद बिस्मिल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उदार आदर्शों के लिए जाना जाता है और उन्हें उनके समर्पण और बलिदान के लिए सलामी दी जाती है। उनकी वीरता और उनका योगदान भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय हैं।


राम प्रसाद बिस्मिल का परिवार

रामप्रसाद बिस्मिल का परिवार उनके जीवन के विभिन्न चरणों में उनके साथ रहा है। उनके परिवार के बारे में निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध है:

पिता (Father): रामप्रसाद बिस्मिल के पिता का नाम मुल्ताजी सिंह था। वे छोटे से किराने के दुकानदार थे और गरीब थे।

माता (Mother): उनकी माता का नाम मुरती देवी था।

भाइयों (Siblings): रामप्रसाद बिस्मिल के एक छोटे भाई थे जिनका नाम जीवन लाल था।

पत्नी (Wife): रामप्रसाद बिस्मिल की शादी उनकी युवावस्था में ही हुई थी। उनकी पत्नी का नाम गीता देवी था।

बच्चे (Children): रामप्रसाद बिस्मिल के बच्चे नहीं थे।

रामप्रसाद बिस्मिल अपने परिवार को अपार स्नेह और समर्पण से जाना जाता है। उन्होंने अपने क्रांतिकारी आदर्शों के लिए अपने जीवन को समर्पित किया और स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनके उद्देश्यों और आदर्शों का समर्थन किया और उनके साथी बने।


राम प्रसाद बिस्मिल की शिक्षा 

रामप्रसाद बिस्मिल का शिक्षा जीवन उनके योग्यता और उनके स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण था। वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव गोकुलपुर में प्राप्त करते थे। उनके पिता का नाम मुल्ताजी सिंह था, जो एक छोटे से किराने के दुकानदार थे, इसलिए उनके पास बड़े धन के साथ शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं था।

रामप्रसाद बिस्मिल ने गोकुलपुर के प्राथमिक विद्यालय से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और फिर उन्होंने अपने शिक्षा को आगे बढ़ाया। वे बचपन से ही पढ़े-लिखे थे और राजकीय विद्यालय फैजाबाद में प्राध्यापक के रूप में काम किया था।

रामप्रसाद बिस्मिल का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान उनके लेखन और कविता में भी दिखता है। उन्होंने भारतीय समाज को जागरूक करने के लिए अपनी रचनाओं के माध्यम से सच्चाई और स्वतंत्रता के महत्व को प्रस्तुत किया।

रामप्रसाद बिस्मिल का शिक्षा और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान एक प्रेरणास्पद है, जो दिखाता है कि उच्च शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती है जब आपके पास समर्पण और संघर्ष की भावना हो।

रामप्रसाद बिस्मिल की क्रांति
राम प्रसाद बिस्मिल जी के कथन 

रामप्रसाद बिस्मिल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया था और अंग्रेजी शासन के खिलाफ उत्साही भारतीय थे।

यहां कुछ महत्वपूर्ण क्रियाएँ और क्रांतिकारी गतिविधियाँ हैं जिनका रामप्रसाद बिस्मिल ने भागीदारी की:

हिंदुस्तान रेपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना (Hindustan Republican Association): रामप्रसाद बिस्मिल ने भगत सिंग, चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लाल, अशफाकुल्ला खान आदि के साथ मिलकर 'हिंदुस्तान रेपब्लिकन एसोसिएशन' की स्थापना की थी। इस एसोसिएशन का उद्देश्य था ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करना।

ककोरी तांडव घटना (Kakori Train Robbery): 9 अगस्त 1925 को बिस्मिल जी ने भारतीय रेलवे की ककोरी ट्रेन पर हमला किया। इस घटना के जरिए उन्होंने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लिए धन संग्रहित किया और इसका उपयोग स्वतंत्रता संग्राम के लिए किया।

साजी सम्भाल परिवार के संघर्ष (Saazish Sambhal Conspiracy): रामप्रसाद बिस्मिल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए नेतृत्व किया और विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों का आयोजन किया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विच्छेद (Contribution to the Indian Independence Movement): रामप्रसाद बिस्मिल ने विभिन्न स्थानों पर उपनाम और गुप्त संगठनों के तहत स्वतंत्रता संग्राम में योगदान किया।

रामप्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक उत्कृष्ट संघर्षक थे और उनका योगदान भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन को स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया और शहीद हो गए, लेकिन उनकी वीरता और समर्पण आज भी लोगों के दिलों में जिवित हैं।

राम प्रसाद बिस्मिल के कथन 



रामप्रसाद बिस्मिल जी के द्वारा कहे गए प्रमुख कथनों में से कुछ उनके आदर्शों और योगदान को उजागर करते हैं:

"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।" - 
यह पंक्ति रामप्रसाद बिस्मिल जी की वीर भावनाओं को प्रकट करती है और उनकी आजादी के लिए अपनी जान और संर्पण की भावना को व्यक्त करती है।

"जो शेर हमारे शेरों के पीछे चलेंगे, वो जिंदा वापस नहीं आएंगे।" - 
यह कथन उनकी साहसी भावनाओं और अदान-प्रदान को दर्शाता है, जो उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में दिखाए।

"क्यों डरते हो जब जिन्दा हो हम?"
यह कथन रामप्रसाद बिस्मिल जी का निर्भीक और वीर दृष्टिकोण दिखाता है। उन्होंने आजादी के लिए खुद को समर्पित किया था और उन्होंने डर का कोई स्थान नहीं दिया।

"आपका समय आ गया है, आपके बीते जिन्दगी की  सफलता और कठिनाइयों का मौन साक्षी है।"
इस कथन से व्यक्त होता है कि उन्होंने जिन्दगी के कठिनाइयों का सामना किया और अपने उद्देश्यों को हासिल करने के लिए उन्होंने समर्पण और परिश्रम की आवश्यकता को समझा।

ये कथन उनकी विरासत और उनके स्वतंत्रता संग्राम में उनके अद्वितीय योगदान को उजागर करते हैं और भारतीय जनता को साहस देते हैं। रामप्रसाद बिस्मिल जी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान वीर और योगदानी क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ