कजरी
कजरी श्रावण श्रावण माह में पूर्वी उत्तर प्रदेश में गया जाने वाला लोकगीत है
उत्पत्ति : मिर्जापुर से हुई है
विषय वस्तु : राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग
कजरी लोकगीत में श्रृंगार रस की प्रधानता होती है स्त्रियों के समूह द्वारा गाए जाने वाली कजरी को ढुलमुनिया कजरी कहते हैं।
कजरी के चार प्रमुख केंद्र है जिन्हें अखाड़ा कहा जाता है।
- श्री शिवदास मालवीय अखाड़ा
- बैरागी अखाड़ा
- अक्खड़ अखाड़ा
- जहांगीर अखाड़ा
प्रसिद्ध कजरी गायिका : मालिनी अवस्थी , उर्मिला श्रीवास्तव ,उषा गुप्ता ,विंध्यवासिनी देवी
ठुमरी :
इसकी उत्पत्ति अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में हुई थी
विशिष्ट विशेषता: भगवान श्री कृष्ण व राधा जी के जीवन का सचित्र वर्णन
संबंधित घराने : लखनऊ घराना, वाराणसी घराना, व पटियाला घराना
ठुमरी गायन की एक रोमांटिक व कामुक लोकगीत है।
ठुमरी को भारतीय शास्त्रीय संगीत का गीत कहा जाता है।
शोभा गुर्टू ठुमरी की रानी कही जाती है।
बेगम अख्तर ,गौहर जान ,शोभा गुर्टू ,नूर जीशान और प्रभा अटरिया यह ठुमरी से जुड़ी है।
सोहर :
यह अवध एवं पूर्वांचल का लोकप्रिय लो:कगीत है जो बच्चों के जन्म पर गया जाता है जो मनुष्य के जीवन चक्र को प्रदर्शित करता है।
चैती :
क्षेत्र :पूर्वांचल
यह चैत्र माह पर केंद्रित है चैत्र में भगवान रामचंद्र का जन्म दिवस है जब इस लोकगीत को गाया जाता है तो इसके अंतिम पक्ष में रामा शब्द लगा होता है।
रसिया :
रसिया ब्रज क्षेत्र में होली के समय गाए जाने वाला लोकप्रिय लोकगीत है।
विशेष: भगवान श्री कृष्ण व राधा जी के प्रेम प्रसंग पर आधारित है।
ढोला :
क्षेत्र: आगरा व मेरठ क्षेत्र का लोकप्रिय लोकगीत है
इस गीत के माध्यम से ढोल व मारू के चरित्र का वर्णन किया जाता है
फाग :
क्षेत्र :पूर्वी उत्तर प्रदेश
होली उत्सव पर गाया जाने वाला गीत है
विशेष: प्राकृतिक सौंदर्य व श्रीकृष्ण व राधा जी के प्रेम प्रसंग
बिरहा :
क्षेत्र : पूर्वी उत्तर प्रदेश का लोकगीत है ।
बिरहा लोकगीत को प्रायः अहीर समुदाय द्वारा गाया या सुना जाता है विषय : पति के बिरह में उदास पत्नी का भाव
प्रथम गायक गाजीपुर निवासी बिहारी यादव
आल्हा :
क्षेत्र बुंदेलखंड , महोबा
नकटा
अवध क्षेत्र
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