इतिहास किसे कहते है ?इतिहास का अध्ययन क्यों आवश्यक है? और इसे क्यों जानना है आइए इसे विस्तार से जाने

भूतकाल में घटित घटनाओं एवं उससे संबंध रखने वाली घटनाओं का काल क्रमानुसार वर्णन करना ही इतिहास कहलाता है। 



इतिहास का अध्ययन क्यों आवश्यक है? 

इतिहास का अध्ययन इसलिए करते हैं जिससे हमें बीती हुई घटनाओं की जानकारी प्राप्त हो सके या अपने अतीत को हम जान सके

अब प्रश्न यह उठता है कि 

हमें अतीत को जानना ही क्यों है ? 

हमें अपने अतीत का अध्ययन इसलिए करना होता है ताकि हम अपनी सभ्यताओं को समझ सकें अपने विरासत को समझ सकें 

विरासत को समझने से तात्पर्य यह है कि हम अपने सभ्यता के विस्तार को समझ सकें ,सभ्यता की निरंतरता को समझ सकें ,सभ्यता के परिवर्तन के तथ्यों को समझ सकें 

उपरोक्त समझ बनाकर हम विकास कर सकें

क्या इतिहास के अध्ययन में भूगोल की भूमिका है

इतिहास के अध्ययन के लिए भूगोल की भी भूमिका है भूगोल इसलिए आवश्यक है ताकि भौगोलिक विकास एवं परिवर्तन का इतिहास पर पडने वाले प्रभाव को हम समझ सकें। 

जैसे सभ्यताओं का विकास 

भूगोल यह भी बताता है की सभ्यता का विस्तार किसी क्षेत्र में क्यों हो पाया

इतिहास का विभाजन : 

इतिहास के विभाजन को हम कई प्रकार से विभाजित करते हैं। 

अध्ययन एवं स्रोत के आधार पर :

स्रोत के आधार पर दो प्रकार से इसका विभाजन करते हैं। 
  • साहित्यिक स्रोत 
  • पुरातात्विक स्रोत
इसी के आधार पर इतिहास को तीन कालों में बांटा गया है। 

प्रागैतिहासिक काल 

इसके अध्ययन हेतु केवल पुरातात्विक स्रोत उपलब्ध है। 

आद्य ऐतिहासिक काल

वह काल इसके अध्ययन हेतु पुरातात्विक स्रोत एवं लिखित स्रोत दोनों उपलब्ध है लेकिन लिखित साक्ष्य को पढ़ा नहीं जा सकता । 
उदाहरण  हड़प्पा सभ्यता , वैदिक काल

ऐतिहासिक काल 

ऐसा  इसके अध्ययन हेतु पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों स्रोत उपलब्ध है। 

उपकरणों के आधार पर:

पाषाण काल 

जिस काल में मानव केवल पत्थर के उपकरणों का प्रयोग करता था 

ताम्र पाषाण काल 

इस कल का मानव अपने उपकरणों के निर्माण में पत्थरों के साथ धातुओं के उपकरणों का भी प्रयोग करता था 

लौह काल

लौह काल में मनुष्य पत्थर, तांबा ,कांसा,तथा लोहे का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था 
लोहे का प्रयोग  
  • कृषि कार्य हल के फाल के रूप में 
  • हथियारों के निर्माण कर जंगलों को साफ करने में 
  • जंगली जानवरों से बचने में

समय के अनुसार इतिहास का विभाजन

  • प्राचीन भारत 
  • मध्यकालीन भारत 
  • आधुनिक भारत

गलत विभाजन

यह विभाजन एक गलत विभाजन है जिसे ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल के द्वारा प्रस्तुत किया गया है 
जेम्स मिल ने इसे धर्म के आधार पर बांटा है 
  • प्राचीन भारत                   हिंदू काल 
  • मध्यकालीन भारत          मुस्लिम काल 
  • आधुनिक भारत              ब्रिटिश काल

पृथ्वी एवं मानव का विकास क्रम: 

पृथ्वी का विकास क्रम

पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व हुई पृथ्वी की विकास के अंतिम चरण को चातुर्थकी कहते हैं । 
इसी चातुर्थकी से फेनेरोजोइक काल संबंध है। 

फेनेरोजोइक काल की विशेषता 

  • 50 करोड़ वर्ष पूर्व का रहा होगा
  • पहली बार जीवाश्म इसी काल से प्राप्त होने लगते हैं । 
  • पहली बार इसी काल में कशेरुकीय जीव की प्राप्ति होती है। 
  • इसी काल में डायनासोर जैसे विशाल जीव की उत्पत्ति हुई होगी लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व
  • डायनासोर अपना अस्तित्व एक करोड़ वर्ष पूर्व तक रख सका होगा इसी काल में स्तनधारी जीव की भी उत्पत्ति हुई होगी 
  • प्रारंभिक मैमल्स को विलाफ्रेंका जंतु समूह कहते हैं 
  • मानव का विकास लगभग 10 लाख पूर्व हुआ होगा 

चातुर्थकी 

इससे दो भागों में विभाजित किया गया । 

  • प्लास्टोसिन युग इसे अति नूतन कल कहते हैं इसका समय 20 लाख से 10000 बी सी तक है

  • होलोसीन युग इस अद्यतन कल कहते हैं इसका समय 10000 बी सी लेकर वर्तमान तक है
2016 के पश्चात भू वैज्ञानिकों ने जीव मंडल में मानव की बढ़ती हुई भूमिका को देखते हुए युग की अवधारणा में कुछ संशोधन प्रस्तुत किए हैं अब माना जाने लगा है की होलोसिन युग अब समाप्त हो गया है और एक नया युग प्रारंभ हो गया है जिसे एंथ्रोपोसिन युग कहा गया है। 

होलोसिन युग की विशेषता :

  • यह कल मध्य पाषाण काल से जुड़ा हुआ है। 
  • अग्नि का प्रयोग प्रारंभ होता है । 
  • इस काल का मानव भाषा बोलने में सक्षम है । 
  • इस काल का मानव अपने उपकरण के निर्माण में सक्षम है। 
  • निएंडरथल मानव इसी कल से जुड़ा हुआ है। 

मानव का विकास क्रम:

3.5 से 2.5 करोड़ वर्ष पूर्व बंदरों का एक समूह जलवायुविक परिवर्तन एवं जनसंख्या में बढ़ोतरी के कारण उष्णकटिबंधीय जंगलों की सीमा तक आ पहुंचा 
मैदानी इलाकों में आने के बाद उसके व्यवहार में कुछ परिवर्तन देखे गए अब वह कुछ पाषाण उपकरणों का प्रयोग करने लगा इसकी वजह से उसकी कमर सीधी होने लगी 






बंदरों का यही समूह आगे रामापिथेकस समूह कहलाया
आगे रामापीथिकस समूह का एक समूह और मैदानी इलाके की तरफ बढ़ा और यह मैदाने में रहने के अधिक उपयुक्त हो गया 
यह पाषाण उपकरणों का बेहतर प्रयोग करने लगा जिससे इसकी कमर और अधिक सीधी हुई 
इस प्रकार के बंदरों के समूह को आस्ट्रेलोपिथेकस कहा गया है






आस्ट्रेलोपिथेकस मानव को ही मनुष्यों का आदिम पूर्वज माना जाता है। 

पिंथोक्रेथेपस मानव :

  • इसकी अधिकांश उपस्थित चीन में मिलती है ।
  • इसका चेहरा अधिक गोलाकार था । 
  • इसकी कमर अधिक सीधी थी । 
  • कमर सीधी होने से इसकी दृष्टि क्षमता अधिक थी। 

निएंडरथल मानव:



  • इसके साक्ष्य जर्मनी के नियांडर घाटी में पाए जाते हैं । 
  • यह होलोसिन काल से संबंध है ‌
  • इस मानव ने उपकरण के निर्माण में विविधता दिखाई । 
  • अब यह मानव न केवल पाषाण उपकरणों का प्रयोग करता था बल्कि उस छोटे-छोटे उपकरण भी बनाता था जिसे सूक्ष्म पाषाण उपकरण कहते थे। 
  • Microliths छोटे पाषाण उपकरण


  • Megaliths महापाषाणिक संस्कृति जो लोग कल से जुड़ा हुआ था कब्र के आगे जो बड़े-बड़े पत्थर लगे रहते थे

होमोसेपियंस मानव:



  • यह आधुनिक मानव है इस मानव में वे गुण पाए जाते हैं जो की सामान्य आधुनिक मानव में प्राप्त होते हैं 
  • इसी मानव से आगे के सभी  मानव प्रजातियों का विकास होता है 
  • होमो सेपियंस मानव से ही क्रमानुसार क्रोमैगन ग्रेमालडी जैसी प्रजातियां तथा प्रोटो ऑस्ट्रेलायड, नीग्रोयायड तथा मांगो लाइड जैसी मानव प्रजातियों का विकास हुआ



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