सौदा या मजबूरी

एक बार एक गरीब किसान अपना घोड़ा बेचने गांव से शहर की ओर आया। राह में चलते वक्त उसे एक व्यक्ति मिला। उसने किसान से पूछा कि इस घोड़े को कहां लिए घूम रहे हो ? किसान ने कहा, साहब इसे शहर में बेचने जा रहा हूं।



व्यक्ति ने कहा, 'मैं इस घोड़े को खरीदना चाहता हूं। पर, पहले मैं इस पर बैठकर इसकी मजबूती और रफ्तार देखना चाहता हूं। किसान ने घोड़े की लगाम उसके हाथ में दे दी। व्यक्ति थोड़ी देर में वापस आया और किसान से घोड़े का दाम पूछा।


किसान ने दाम पांच हजार बताया। व्यक्ति ने कहा, 'नहीं मैं तो इसके छह हजार दूंगा।' किसान बहुत खुश हुआ। इससे अच्छी बात और क्या


हो सकती हैं। थोड़ी देर बाद फिर व्यक्ति ने कहा, 'नहीं मैं इसके सात हजार दूंगा।' किसान और भी खुश हो गया। सोचा कैसा पागल इनसान है। व्यक्ति पीठ पर बैठा ही था, चलने से पहले फिर एक बार रुका और कहा, 'नहीं! मैं तो इसके पूरे आठ हजार रुपये दूंगा। इस घोड़े की कीमत इतनी ही लगती है।'


किसान की आंख से आंसू बहने लगे और कहा, 'हां साब, इसकी यही कीमत है। मेरी सच में मजबूरी ही थी, मुझे अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे की जरूरत थी।' 

फिर किसान ने उस व्यक्ति से पूछा, 'साब, मेरी तो मजबूरी थी कि मुझे विवाह के लिए रुपयों की जरुरत थी, पर आप क्यों ज्यादा कीमत देने की बात कर रहे थे? आपके लिए तो बेहतर ही था जितनी कम कीमत चुकानी पड़ती।'


व्यक्ति ने कहा मेरी भी मजबूरी ही थी। मेरे घर में बड़ों ने मुझे सौदा करना सिखाया है, किसी की मजबूरी को खरीदना नहीं।

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