चट्टान के प्रकार एवं उनकी विशेषताएं

सामान्य परिचय (General Introduction):

खनिज एक ऐसा प्राकृतिक, कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्त्व है, जिसमें एक क्रमबद्ध परमाण्विक संरचना, निश्चित रासायनिक संघटन तथा भौतिक गुणधर्म होते हैं। विभिन्न प्रकार के खनिजों के मिलने से ही 'चट्टानों का निर्माण होता है। 

https://studyup4u.blogspot.com/2024/02/Rocks details in hindi.html


चट्टान कई बार केवल एक ही खनिज द्वारा निर्मित होती है, किंतु सामान्यतः यह दो या दो से अधिक खनिजों का मिश्रण होती है। साधारण शब्दों में कहें तो धातुओं के अतिरिक्त पृथ्वी पर पाए जाने वाले कठोर एवं मुलायम सभी प्रकार के पदार्थों को 'चट्टान' कहा जाता है।

पृथ्वी की संपूर्ण पर्पटी का लगभग 98 प्रतिशत भाग आठ तत्त्वों, जैसे- ऑक्सीजन, सिलिकॉन, एल्युमीनियम, लोहा, कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम तथा मैग्नीशियम से निर्मित है तथा शेष भाग हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, मैगनीज, सल्फर, कार्बन, निकेल तथा अन्य पदार्थों से बना है।

पृथ्वी पर लगभग 2,000 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं, लेकिन उनमें से मुख्खा रूप से 24 खनिज (कुछ स्रोतों में ये आँकड़े भिन्न-भिन्न देखने को मिलते हैं।) ऐसे है, जिनसे स्थलमंडल की चट्टानों का का निर्माण हुआ है इसलिये इन्हें 'चट्टान निर्माणकारी खनिज भी कहते हैं, जैसे- ऑक्साइड, सिलिकेट, कार्बोनेट आदि।

इन प्रमुख खनिज तत्त्वों में से भी केवल 6 खनिज (कार्दर्ज, अधक, पाइरोक्सीन, ओलिवीन, फेल्सपार व एंफीबोल्स) ही मुख्य रूप से पाए जाते हैं।

पृथ्वी की आंतरिक परतों में पाया जाने वाला मैग्मा सभी खनिजों का मूल स्रोत है। फेल्डसपार' (Feldspar) और 'कार्ट्ज (Quartaj) चट्टानों में पाए जाने वाले सामान्य खनिज तत्त्व है। साथ ही, भूपृष्ठ के संघटन में इन्ही सिलिकेट खनिज समूहों की प्रधानता पाई जाती है।

कभी-कभी चट्टाने विभिन्न खनिजों (दो या दो से अधिक) के संयोजन से न बनकर एकल खनिज से ही निर्मित होती है, जैसे सोना, चांदी, ग्रेफाइट, तांबा आदि।

नोट:  पेट्रोलॉजी शब्द शैलों के अध्ययन से संबंधित है।

आग्रेय चट्टान (Igneous Rock):


आग्रेय चट्टानों का निर्माण ज्वालामुखी से निकले मैग्मा या लावा से। होता है। जव तप्त एवं तरल मैग्मा ठंडा होकर पृथ्वी की बाह्य व आंतरिक परतों में जमकर ठोस अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तो इस प्रकार की चट्टानों का निर्माण होता है। पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात् सर्वप्रथम इन चट्टानों का निर्माण हुआ था, इसलिये इन बट्टानों को प्राथमिक चट्टानें' या 'जनक चट्टानें' भी कहते हैं।

आग्नेय चट्टान की विशेषताएँ :

आग्रेय चट्टान स्थूल, परत रहित, कठोर संघटन एवं जीवाश्म रहित होती है। इन चट्टानों में चुंबकीय लोहा, निकेल, तांबा, सीसा, जस्ता, क्रोमाइट, मैंगनीज,

सोना तथा प्लेटिनम आदि बहुमूल्य खनिज पाए जाते हैं। • मैग्मा के निर्माण के समय अवशेषों व जीवाश्मों के जल जाने के कारण ही इन चट्टानों में जीवाश्मों का अभाव पाया जाता है इसलिये इन चट्टानों से खनिज तेल,प्राकृतिक गैस एवं कोयले की प्राप्ति नहीं होती है।

इन चट्टानों पर रासायनिक अपक्षय का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। तथा ये चट्टानें कठोर एवं रवेदार होती हैं।

आग्रेय चट्टानों का वर्गीकरण (Classification of Igneous Rocks):

ज्वालामुखी प्रक्रिया के द्वारा निकले तप्त एवं तरल मैग्मा या लावा का जमाव पृथ्वी के अंदर तथा बाहर दोनों स्थानों पर होता है। अतः मैग्मा के जमाव के आधार घर आग्रेय चट्टानों को निम्नलिखित उपभागों में बाँटा जा सकता है-


आंतरिक आग्नेय चट्टान (Intrusive Igneous Rock)

पृथ्वी के अंदर की परतों में मैग्मा के शीतलीकरण से आंतरिक आग्नेय चट्टानों का विकास होता है। यह ठंडा होकर ठोस रूप प्राप्त कर लेता है। ये चट्टाने दो प्रकार की होती हैं, जो निम्र है।

ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निकला तप्त एवं तरल मैग्मा या लावा पृथ्वी की सतह पर न आकर पृथ्वी के अंदर अधिक गहराई में ठंडा होकर जम जाता है तो इस प्रकार की आग्रेय चट्टानों का निर्माण होता है।


पातालीय आग्नेय चट्टानें : 

इन चट्टानों को 'आभ्यंतरिक आग्नेय चट्टान' भी कहते हैं। चूंकि इनका शीतलन मंद गति से सम्पन्न होता है, अतः इनके रवे बड़े आकार के होते हैं, जैसे- ग्रेनाइट। मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें

भू-गर्भ से निकलने वाला मैग्मा धरातल पर न पहुँचकर मार्ग में मिलने वाली संधियों, दरारों अथवा तलों में जमकर ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है तो इसे मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें' कहा जाता है। जैसे- लैकोलिथ, डाइक, सिल, फैकोलिथ आदि


बाह्य आग्रेय चट्टान (Extrusive Igneous Rock) :

ज्वालामुखी के उद्भेदन के समय मैग्मा या लावा के पृथ्वी की सतह पर आकर ठंडे होने से जो चट्टानें बनती हैं, उन्हें 'बाहा आग्नेय चट्टान' या 'बहिर्मेंदी आग्नेय बट्टान कहते हैं। ये चट्टानें प्रायः अक्रिस्टलीय होती हैं, जैसे- बेबाल्टिक चट्टानें

अवसादी चट्टान (Sedimentary Rock) :

विभिन्न आकार एवं प्रकार के अवसादों का परतों के रूप में जमाव होने से कालांतर में अवसादी चट्टान का निर्माण होता है।

ये चट्टानें परतों के रूप में पाई जाती हैं अतः इन्हें 'परतदार चट्टान' भी कहते हैं। धरातल पर पाई जाने वाली अधिकांश चट्टानें अवसादी चट्टानें होती हैं। ये चट्टानें संगठित, असंगठित अथवा ढीली, किसी भी प्रकार की हो सकती हैं। 

इन चट्टानों की परतों के बीच अत्यधिक मात्रा में अवशेष दबे होते हैं, इसलिये इनमें जीवाश्म अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं। जिसके कारण यहाँ खनिज तेल, प्राकृतिक गैस एवं कोयला के भंडार होने की संभावना सर्वाधिक रहती है।

अवसादी चट्टानों का नाम अवसाद ढोने वाले कारकों और उनके जमाव के संदर्भ में रखा जाता है, जैसे- नदीकृत अवसादी चट्टानें, झील-सरोवरी अवसादी चट्टानें, हिमानीकृत अवसादी चट्टानें आदि। 

गर्म एवं शुष्क प्रदेशों में वायु के द्वारा लाये गए धूल व मिट्टी से भी अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है। "लोएस' इसका उदाहरण है। 

पृथ्वी के भू-पृष्ठ के लगभग 75 प्रतिशत भाग पर अवसादी चट्टानों का विस्तार पाया जाता है, जबकि भू-पृष्ठ की बनावट में इसका केवल 5 प्रतिशत योगदान है। 

निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण तीन समूहों में किया जा सकता है-

यांत्रिकी रूप से निर्मितः बालुकाश्म, पिंडशिला, शेल (Shale), विमृदा आदि। 

कार्बनिक रूप से निर्मितः खड़िया, गीजराइट, चूना पत्थर, कोयला आदि। 

रासायनिक रूप से निर्मितः नमक की चट्टान, श्रृंग प्रस्तर, पोटाश, हेलाइट आदि।

अवसादी चट्टान की विशेषताएँ :

ये चट्टाने अधिकांशतः परतदार रूप में पाई जाती है।

इनमें वनस्पति एवं जीव-जंतुओं के जीवाश्म बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं, जिसमें खनिज तेल की उपस्थिति भी पाई जाती है। इन चट्टानों से फॉस्फेट, कोयला, पीट, बालुका पत्थर आदि खनिज प्राप्त किये जाते हैं।

दामोदर, महानदी तथा गोदावरी नदी बेसिनों की अवसादी चट्टानों में कोयला पाया जाता है।

ये चट्टाने अपेक्षाकृत मुलायम होती हैं। जिप्सम, खड़िया, चीका मिट्टी, नमक आदि प्रमुख अवसादी शेलें हैं। ग्लेशियर के अपरदन से भी अवसादी चट्टानें बनती हैं। हिमोढ़ (मोरेन) इसी तरह की चट्टान है।

नोट: आगरा का किला तथा दिल्ली का लाल किला लाल बलुआ पत्थर नामक अवसादी चट्टानों से ही बना है।


रूपांतरित या कायांतरित चट्टान (Metamorphic Rock):

अवसादी तथा आग्नेय चट्टानों पर अत्यधिक ताप व दाब तथा आयतन में परिवर्तन के कारण उनकी रासायनिक संरचना के साथ-साथ उसकी मूल भौतिक विशेषताओं में भी परिवर्तन होता है। इस प्रक्रिया को कायांतरण या रूपांतरण' कहते हैं तथा इस प्रक्रिया द्वारा निर्मित चट्टान को 'रूपांतरित या कायांतरित चट्टान' कहते हैं। 

इन चट्टानों को इनकी कठोरता, घनी धारीदार संरचना तथा गुंथे हुए रवों के कारण जाना जाता है।

रुपांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज जब सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित होते हैं तो उन्हें 'फोलिएशन' अथवा 'रेखांकन' कहते हैं।


शैल चक्र (Rock Cycle):

इस प्रक्रिया का संबंध चट्टानों के स्वरुपीय परिवर्तन से है। चूंकि चट्टानों का स्वरूप सदैव स्थायी नहीं होता अर्थात् इनमें क्रमिक रूप से परिवर्तन परिलक्षित होते हैं। तब एक शैल चक्र का विकास होता है, जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम प्राथमिक शैल

के रूप में आग्नेय शैल के अनाच्छादन के फलस्वरूप अवसादी शैल में तथा अत्यधिक ताप व दाब के फलस्वरूप कायांतरित चट्टान में परिवर्तन होता है। 

अंततः इन सभी चट्टानों का प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया (Alternation process) द्वारा पृथ्वी के आंतरिक परतों में अत्यधिक तापमान के प्रभाव से पुनः मैग्मा में परिवर्तन हो जाता है। आगे चलकर, ज्वालामुखी के माध्यम से इसी मैग्मा का रूपांतरण आग्नेय चट्टानों में होता है, 

इस प्रकार एक सम्पूर्ण चट्टान चक्र का विकास होता है।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ