पृथ्वी की आन्तरिक संरचना :
पृथ्वी के आन्तरिक संरचना के विषय में अलग अलग वैज्ञानिकों का अलग -अलग मत है / भूगर्भ में पायी जाने वाली परतो में मोटाई ,घनत्व ,तापमान ,भार एवं वहा पाए जाने वाले पदार्थ की प्रकृति पर अभी पूर्ण सहमति नहीं हो पायी है / पृथ्वी के अन्दर के हिस्सों को तीन भागो में बांटा गया है /
- भूपर्पटी (Crust
- आवरण
- केन्द्रीय भाग (Core)
- सियाल (SiAl)- इसमे सिलिकान एवं एल्यूमिनियम की बहुलता होती है /
- सीमा (SiMa) - इसमे सिलिकान एवं मैग्नीशियम की बहुलता होती है
आवरण : 2900 किमी० मोटा यह क्षेत्र मुखतः बेसाल्ट पत्थरो के समूह की चट्टानों से बना है/ आवरण के हिस्से में मैग्मा चेम्बर पाए जाते है / इसका औषत घनत्व 3.5 से 5.5 तक होता है / यह पृथ्वी के कुल आयातन का 83% भाग घेरे हुए है /
केन्द्रीय भाग : पृथ्वी के केंद्र के क्षेत्र को केन्द्रीय भाग कहते है / यह क्षेत्र निकेल एवं फेरस का बना होता है / पृथ्वी का केन्द्रीय भाग संभवतः द्रव अथवा प्लास्टिक अवस्था में है / यह पृथ्वी के कुल आयतन का 16% भाग घेरे हुए है /
पृथ्वी के नीचे जाने पर प्रति 32 मी० की गहराई पर तापमान 1 डिग्री सेंट्रीग्रेट बढ़ता जाता है /
सर आइजक न्यूटन ने साबित किया की पृथ्वी नारंगी के समान है /
जेम्स जीन ने इसे नारंगी के बजाय नासपाती के समान है /
पृथ्वी के बाह्य सतह को चार भागो में बांटा गया है /
- स्थलमंडल
- जलमंडल
- वायुमंडल
- जैवमंडल
स्थलमंडल :
चट्टान :
ज्वालामुखी :
सक्रिय ज्वालामुखी :
- इसमे अक्सर उदगार होता है / वर्त्तमान समय में विश्व में सक्रिय ज्वालामुखी की संख्या 500 है / इनमे प्रमुख है , इटली का एटना तथा स्ट्राम्बोली मैक्सिको (उत्तर अमेरिका) में
- स्थित कोलिमा ज्वालामुखी बहुत सक्रिय ज्वालामुखी है इसमे 40 बार से अधिक बार उदगार हो चुका है /
- स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर अवस्थित है / इसमे सदा प्रज्वलित गैस निकला रहती है , जिससे उसके आस पास का क्षेत्र प्रकाशित होता रहता है /
- इसीलिए इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहते है /
प्रसुप्त ज्वालामुखी :जिसमे निकट अतीत में उदगार नहीं हुआ है / लेकिन इसमे कभी भी उदगार हो सकता है / इसके उदाहरण है - विसूवियस (भूमध्य सागर), क्राकाटोआ (सुंडा जलडमरूमध्य), फ्यूजीयामा (जापान),मेयन (फिलिपीन्स)
शांत ज्वालामुखी :
- वैसा ज्वालामुखी जिसमे ऐतिहासिक काल से कोई उदगार नहीं हुआ है और जिसमे पुनः उदगार होने की संभावना नही हो / इसके उदाहरण है - कोह सुल्तान एवं देमबन्द (ईरान) , पोपा (म्यांमार ) ,किलीमंजारो (अफ्रीका)चिम्बाराजो (दक्षिण अमेरिका)
- कुल सक्रिय ज्वालामुखी का अधिकाँश प्रशांत महासागर के तटीय भाग में पाया जाता है / प्रशान्त महासागर के परिमेखला को ''अग्नि वलय'' भी कहते है /
- सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीप के तटो पर स्थित है /
- आस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है /
गेसर :
बहुत से ज्वालामुखी क्षेत्रो के समय दरारों तथा सुराखो से होकर जल तथा वाष्प कुछ अधिक ऊचाई तक निकलने लगते है / इसे ही गेसर कहा जाता है / जैसे - ओल्ड फेथफुल गेसर , यह U.S.A के यलोस्टोन पार्क है /
इसमे प्रत्येक मिनट उदगार होता रहता है /
धुआरे :
ये ज्वालामुखी क्रिया के अंतिम अवस्था के प्रतीक है / इनसे गैस एवं जलवाष्प निकला करते है / अलास्का के कटमई पर्वत को हजारो धुआरो की घाटी कहा जाता है /
महत्वपूर्ण
- विश्व का सबसे उंचा ज्वालामुखी पर्वत कोटोपैक्सी (इक्वाडोर) में स्थित है /इसकी उंचाई 19613 फीट है /
- विश्व की सबसे अधिक उंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी ओजोस डेल सालाडो है , जो एण्डीज पर्वतमाला में अर्जेंटीना चिली देश के सीमा पर स्थित है /
- विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित शांत ज्वालामुखी एकान्कागुआ एण्डीज पर्वतमाला पर ही स्थित है / जिसकी उंचाई 6960 मीटर है /
भूकंप
भूगर्भशास्त्र की एक विशेष शाखा , जिसमे भूकंप की सभी विषयों का अध्ययन किया जाता है , सिस्मोलाजी कहलाता है / भूकंप में कम्पन तीन प्रकार के होते है /
प्राथमिक तरंग :
यह तरंग पृथ्वी के अन्दर प्रत्येक माध्यम से होकर गुजरती है / इसकी औसत वेग 8 किमी०/सेकेण्ड होती है / यह गति सभी तरंगो से अधिक होती है / जिससे ये तरंग
किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुचती है /
द्वितीय तरंग :
इन्हें अनुप्रस्थ तरंग भी कहते है / यह तरंग केवल ठोस माध्यम से होकर गुजरती है / इनकी औसत वेग 4 किमी०/सेकेण्ड होती है /
एल तरंग:
इन्हें धरातलीय या लम्बी तरंगो के नाम से भी पुकारा जाता है /इन तरंगो की खोज एच० डी० लव ने की थी / इन्हें कई बार के Love Waves नाम से भी पुकारा जाता है/
ये मुख्यतः धरातल तक ही सीमित रहती है /ये ठोस ,द्रव तथा गैस तीनो माध्यमो से गुजर सकती है / इसकी औसत वेग 1.5 से 3 किमी०/ सेकेण्ड होती है/
केंद्र:
भूकंप के उदभव स्थान को उसका केंद्र कहते है / भूकंप के केंद्र के निकट P ,S तथा L तीन प्रकार की तरंगे पहुचती है / पृथ्वी के भीतरी भागो में ये तरंगे अपना मार्ग बदलकर भीतर की ओर अवतल मार्ग पर यात्रा करती है भूकंप केन्द्र से धरातल के साथ 11000 किमी० की दूरी तक P तथा S तरंगे पहुचती है / केन्द्रीय भाग पर पहुचकर S-तरंगे लुप्त हो जाती है और P तरंगे अपवर्तित हो जाती है /इस कारण भूकंप के केंद्र से 11000 किमी० के बाद लगभग 5000 किमी० तक कोई भी तरंग नहीं पहुचती है / इस क्षेत्र को छाया क्षेत्र कहा जाता है
अधिकेन्द्र :
भूकम्प के केंद्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित बिन्दु को भूकंप का अधिकेन्द्र कहते है /
सिस्मोग्राफ :
जिन संवेदनशील यंत्रो द्वारा भूकम्पीय तरंगो की तीव्रता मापी जाती है / उन्हें भूकम्पलेखी सिस्मोग्राफ कहते है / इसके तीन स्केल है
- रासी फेरल स्केल
- मरकेली स्केल
- रिक्टर स्केल
रिक्टर स्केल :
भूकम्प की तीव्रता मापने वाली रिक्टर स्केल का अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर द्वारा 1935 ई० में की गयी थी / रिक्टर स्केल पर प्रत्येक अगली इकाई पिछली ईकाई की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता रखता है इस स्केल पर 2.0 या 3.0 की तीव्रता का हल्का भूकंप होता है / जबकि 6.2 की तीव्रता का अर्थ शक्तिशाली भूकंप से होता है /
महत्वपूर्ण प्रश्न :
भूकम्पीय तरंगो को सिस्मोग्राफ नामक यन्त्र द्वारा रेखांकित किया जाता है /
गौण तरंगे द्रव पदार्थ में से नहीं गुजर सकती /
एल तरंगे केवल धरातल के पास ही चलाती है /
अन्तः सागरीय भूकम्पो द्वारा उत्पन्न लहरों को जापान में सुनामी कहा जाता है /
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