वीर अब्दुल हमीद

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परिचय 

यह कहानी वीर सैनिक अब्दुल हमीद की है। वह भारतीय सेना में सैनिकों के दल के क्वार्टर मास्टर हवलदार थे। वह एक बहादुर सैनिक थे। वह 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े थे। अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामपुर गाँव में 1 जुलाई, 1933 को एक मुस्लिम परिवार सकीना बेगम और मोहम्मद उस्मान के यहाँ हुआ था। क्या आप जानना चाहेंगे कि कैसे वह 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक बने?

1965 भारत-पाक युद्ध 

10 सितंबर 1965 के तड़के सुबह का समय था, जब भारत पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहा था। एक पाकिस्तानी पैटन टैंको का दल भारत के खेमकरन सेक्टर में भीखीविंड, अमृतसर सड़क पर आवागमन कर रहा था। वह चीमा नामक गाँव तक पहुँच चुका था। यह गाँव भारत-पाक सीमा पर था। इस सेक्टर में, युद्ध 6 सितंबर से चल रहा था। यहाँ पर हवलदार अब्दुल हमीद व अन्य सैनिक जो “4 गोला फेंकने वाले सैनिकों के दल" के थे, पाकिस्तानी सेना से मुकाबला करने का इंतजार कर रहे थे। वीर अब्दुल हमीद एक जीप में थे। उनके पास एक विशेष प्रकार की बन्दूक थी। पाकिस्तानी सेना के पैटन तोप उनसे अधिक दूर नहीं थे। वह अपनी बंदूक से यदि चाहते तो तोपों पर प्रहार कर सकते थे। वह एक अच्छे निशानेबाज थे परंतु वह अपनी गोलियों को बेकार नहीं करना चाहते थे। वह अपनी प्रत्येक गोली से तोपों पर प्रहार करना चाहते थे। पाकिस्तानी तोपें बहुत शक्तिशाली और खतरनाक थीं। वे लगातार पास आते जा रहे थे। वे लगातार गोलाबारी कर रहे थे। वीर अब्दुल हमीद आगे बढ़े। उन्होंने एक पाकिस्तानी टैंक देखा। उन्होने अपनी बंदूक घुमाया और एक गोली दागा। तोप में आग लग गई और वह लपटों से घिर गया। अब्दुल हमीद के सैनिक दल के सभी सैनिक बहुत खुश थे।

अचानक उन्होंने दूसरा टैंक देखा। उन्होंने दुबारा एक गोला दागा और वह भी चिंगारियों में फट गया। चार और तोप देखे गये। पाकिस्तानी अब्दुल हमीद के सैनिक दल पर आक्रमण कर उनको मारना चाहते थे। वह उनके लिए सबसे बड़े शत्रु थे। उन्होंने अपनी तोपों की बंदूकें उनकी ओर मोड़ दी। आग की लपटें आसमान तक ऊँची उठ रही थी। परन्तु दुर्भाग्य से ! दुश्मन का एक गोला उनकी जीप पर गिरा। बहादुर नायक गिर पड़ा। वह बहुत घायल थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया, “आगे बढ़ो और लड़ते रहो।” उन्होने उनका आदेश माना और बहादुरी से लड़े।


कुछ और तोपें सैनिकों की नष्ट कर दी गयी। पाकिस्तानी सैनिक डर गये और भाग गये। यह वीर सैनिक भारतीय सेना का अपने देश के लिए शहीद हो गया। मरने के पश्चात् उन्हें परम वीर चक्र से पुरस्कृत किया गया। वह हमेशा भारतीय लोगो द्वारा श्रद्धा से याद किये जाते रहेंगे, 1965 के पाकिस्तान के विरूद्ध युद्ध में एक सबसे बहादुर नायक के रूप में। उनके गाँव का नाम उनके नाम पर ही 'हमीद धाम' रखा गया।


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